जब किसी नस्ल के अस्तित्व पर संकट आता है तो सब अपने मतभेद भुला के एक हो जाते हैं। किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद अक्सर ये देखा जा सकता है। भारत में भी एक नस्ल संकट में आ गयी है पर ये कोई प्राकृतिक आपदा की वजह से नहीं है इस संकट का नाम है 'अन्ना हजारे' जिसके डर से सारी नेता प्रजाति लामबंद हुई जा रही है। डर भी सच्चा है सारा जनादेश उनके खिलाफ होता जा रहा है और यदि इसी तरह से चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब विलासिता भरी जिंदगी जीने वाले हमारे नेतागण जेल की शोभा बढ़ाते हुए नज़र आयें। इसी भय के चलते सभी नेताओं के तोते उड़े हुए हैं। जबतक केवल सरकार खतरे में थी तो विपक्ष अन्ना के पक्ष में नज़र आया। विपक्षी नेताओं ने अन्दर-अन्दर सभाएं की और सारी कुबुद्धि झोंक दी इस मौके को भुनाने की। इसके लियें भगवा चोले का सहारा लिया गया और उमा भारती को भेजा गया, सहानुभूति और समर्थन जताने के लियें पर जो कुछ उमा भारती के साथ हुआ वो सभी ने देखा। इस आन्दोलन को पूरी तरह से जन-आन्दोलन बनाये रखा गया और आंदोलनकर्ताओं को इसे राजनीती से दूर रखने में पूरी कामयाबी भी मिली। मगर इस तरह से दरकिनार हुई नेता प्रजाति इस बात को हजम नहीं कर पाई, होती भी कैसे आजादी के बाद से इस देश में कभी उनका इतना अनादर नहीं हुआ था। लोकतंत्र के नाम पर ये नस्ल इतनी फली-फूली की भगवान बन बैठी। कभी उन्हें पैसे तोला गया तो किसी ने उन पर आरतियाँ लिख डालीं, पहले मरणोपरांत उनकी मूर्तियाँ लगती थीं अब तो जीते जी भी वो इस सुख को भोग रहे हैं, उन्हें ये विशवास हो चूका था की ये भोली-भाली जनता उनके बिना एक कदम भी नहीं चल सकती।
पर अचानक ये क्या हुआ अर्श से फर्श पर? यहाँ तक तो फिर भी ठीक है, पर अब फर्श से कहाँ? यही सवाल तो पूरी नस्ल को मुंह चिड़ा रहा था पर सभी किंकर्तव्यविमूढ़ थे। धीरे-धीरे, अब सभी ने अपने आपसी मतभेद भुला कर लामबंदी शुरू कर दी है और एक-एक करके हमला करना शुरू किया है। सबसे पहले आये राजद के रघुनाथ प्रसाद सिंह जिनका ब्यान आप सब ने सुना, फिर कपिल सिब्बल, दिग्गी बाबु, अमर सिंह और अब आडवानी। आज तो हद हो गयी जब एक महिला भांड ने भी 'हजारे जी' पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। होता है, कभी-कभी ऐसा भी होता है पर एक बात काबिले-ए-गौर है कि सभी बड़े संभल कर बयान दे रहे हैं और सबके बयानों में एक बात सामान है कि 'मैं अन्ना हजारे जी का बड़ा सम्मान करता हूँ'। कोई गलती से भी 'जी' लगाना नहीं भूल रहा, एक ने हद कर दी जब कहा "अन्ना हजारे जी साहेब"। क्या करें ना चाहते हुए भी करना पद रहा है जनता के गुस्से को भड़का नहीं सकते ना, एक कहावत है ना "अति भक्ति चोरों का लक्षण" पूरी तरह से चरित्रार्थ हो रही है। मेरी याद में एक बार और ऐसी ही एकता देखने को मिली थी जब टी. एन. शेषन चुनाव आयुक्त थे और उन्होंने भी भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने कि कोशिश की थी। तब तो सब गीदड़ों ने मिलकर एक शेर को छका दिया था। पर क्या अब की बार भी ये कामयाब हो जायेंगे? क्या हमें वो सुशासन मिल पायेगा जिसकी उम्मीद बंधी है? देखते हैं....
aap ne to aayeenaa dikha diya. very true
जवाब देंहटाएं