भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार!!! हर तरफ इसी की चर्चा है। हो भी क्यों ना, आखिर सभी त्रस्त हो चुके हैं इससे। सामाजिक कार्यकर्त्ता हों या बाबा रामदेव सभी अपने-अपने ढंग से विरोध कर रहे थे। पर ये किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह से इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर, एक मंच से इसके खिलाफ लड़ा जाये। तभी अन्ना लोकपाल बिल का मुद्दा लेकर जंतर-मंतर पर आमरण अनशन के लियें आये तो जैसे सभी को एक रास्ता मिल गया। अलग-थलग पड़े इन भ्रष्टाचार विरोधियों को एक मंच मिल गया। पूरे भारत से लोग जुड़ गए, विरोध की इन छोटी-छोटी धाराओं ने मिलकर एक ऐसी नदी का निर्माण कर दिया जिसके उफान के सामने किसी कि नहीं चली, सरकार के बड़े-बड़े वकील, कानून के ज्ञाता सब स्तब्ध रह गए और वही हुआ जो लोग चाहते थे। इतिहास गवाह है, किसी जन आन्दोलन कभी इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली। ये भारत वर्ष के लियें हर्ष की बात है। भ्रष्टाचार पर इतना सुनियोजित और सफल हमला शायद कभी नहीं हुआ। डिस्कवरी चैनल पर शेरों को शिकार करते हुए देखा था कुछ-कुछ वैसा ही यहाँ देखने को मिला। पहले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ बाबा रामदेव और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वाक्-युद्ध छेड़ा। फिर उसे चारों तरफ से घेर लिया गया, मगर सरकार अपने मद में चूर थी इसलियें उसने पहले की ही तरह इसे अनदेखा कर दिया। मगर फिर एक सही वक्त पर ऐसा विकट हमला हुआ कि सरकार चारों-खाने चित हो गयी। कपिल सिब्बल हों या वीरप्पा मोइली सभी की सिट्टी-पिट्टी गुम है "दिग्गी" तो कहाँ पूंछ दबा कर छुप गयें हैं कुछ पता नहीं। अन्दर से ना सही पर ऊपर से सरकार यही दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता के साथ हैं। पर उनके पार्टी प्रवक्ताओं के चेहरे से खौफ और खीज के भाव आसानी से पढ़े जा सकतें हैं।
सभी इस जीत का रसास्वादन कर रहे हैं पर क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ ये आखरी लड़ाई थी? क्या इससे भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा? और यदि नहीं तो इसका हल क्या है? फ़िलहाल इतना ही बाकी फिर लिखूंगा
सभी इस जीत का रसास्वादन कर रहे हैं पर क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ ये आखरी लड़ाई थी? क्या इससे भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा? और यदि नहीं तो इसका हल क्या है? फ़िलहाल इतना ही बाकी फिर लिखूंगा
क्रमश:
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