गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

डर की एकता

जब किसी नस्ल के अस्तित्व पर संकट आता है तो सब अपने मतभेद भुला के एक हो जाते हैं किसी भी प्राकृतिक आपदा के बाद अक्सर ये देखा जा सकता है भारत में भी एक नस्ल संकट में आ गयी है पर ये कोई प्राकृतिक आपदा की वजह से नहीं है इस संकट का नाम है 'अन्ना हजारे' जिसके डर से सारी नेता प्रजाति लामबंद हुई जा रही है डर भी सच्चा है सारा जनादेश उनके खिलाफ होता जा रहा है और यदि इसी तरह से चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब विलासिता भरी जिंदगी जीने वाले हमारे नेतागण जेल की शोभा बढ़ाते हुए नज़र आयें इसी भय के चलते सभी नेताओं के तोते उड़े हुए हैं जबतक केवल सरकार खतरे में थी तो विपक्ष अन्ना के पक्ष में नज़र आया विपक्षी नेताओं ने अन्दर-अन्दर सभाएं की और सारी कुबुद्धि झोंक दी इस मौके को भुनाने की इसके लियें भगवा चोले का सहारा लिया गया और उमा भारती को भेजा गया, सहानुभूति और समर्थन जताने के लियें पर जो कुछ  उमा भारती के साथ हुआ वो सभी ने देखा इस आन्दोलन को पूरी तरह से जन-आन्दोलन बनाये रखा गया और आंदोलनकर्ताओं को इसे राजनीती से दूर रखने में पूरी कामयाबी भी मिली मगर इस तरह से दरकिनार हुई नेता प्रजाति इस बात को हजम नहीं कर पाई, होती भी कैसे आजादी के बाद से इस देश में कभी उनका इतना अनादर नहीं हुआ था लोकतंत्र के नाम पर ये नस्ल इतनी फली-फूली की भगवान बन बैठीकभी उन्हें पैसे तोला गया तो किसी ने उन पर आरतियाँ लिख डालीं, पहले मरणोपरांत उनकी मूर्तियाँ लगती थीं अब तो जीते जी भी वो इस सुख को भोग रहे हैं, उन्हें ये विशवास हो चूका था की ये भोली-भाली जनता उनके बिना एक कदम भी नहीं चल सकती
पर अचानक ये क्या हुआ अर्श से फर्श पर? यहाँ तक तो फिर भी ठीक है, पर अब फर्श से कहाँ? यही सवाल तो पूरी नस्ल को मुंह चिड़ा रहा था पर सभी किंकर्तव्यविमूढ़ थे धीरे-धीरे, अब सभी ने अपने आपसी मतभेद भुला कर लामबंदी शुरू कर दी है और एक-एक करके हमला करना शुरू किया है सबसे पहले आये राजद के रघुनाथ प्रसाद सिंह जिनका ब्यान आप सब ने सुना, फिर कपिल सिब्बल, दिग्गी बाबु, अमर सिंह और अब आडवानी आज तो हद हो गयी जब एक महिला भांड ने भी 'हजारे जी' पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया होता है, कभी-कभी ऐसा भी होता है पर एक बात काबिले-ए-गौर है कि सभी बड़े संभल कर बयान दे रहे हैं और सबके बयानों में एक बात सामान है कि 'मैं अन्ना हजारे जी का बड़ा सम्मान करता हूँ' कोई गलती से भी 'जी' लगाना नहीं भूल रहा, एक ने हद कर दी जब कहा "अन्ना हजारे जी साहेब" क्या करें ना चाहते हुए भी करना पद रहा है जनता के गुस्से को भड़का नहीं सकते ना, एक कहावत है ना "अति भक्ति चोरों का लक्षण" पूरी तरह से चरित्रार्थ हो रही हैमेरी याद में एक बार और ऐसी ही एकता देखने को मिली थी जब टी. एन.  शेषन चुनाव आयुक्त थे और उन्होंने भी भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने कि कोशिश की थी तब तो सब गीदड़ों ने मिलकर एक शेर को छका दिया थापर क्या अब की बार भी ये कामयाब हो जायेंगे?  क्या हमें वो सुशासन मिल पायेगा जिसकी उम्मीद बंधी है? देखते हैं....

रविवार, 10 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार पर हल्ला बोल-2

पिछले चिट्ठे से आगे......          
              जो कुछ अन्ना और उनके साथियों ने किया, वो बहुत जरूरी था/ उनकी इस पहल से भ्रष्टाचार कुछ समय के लियें शीत निद्रा में चला जायेगा मगर नष्ट नहीं होगा/ वो फिर सर उठाएगा और यदि अभी सही रणनीति नहीं अपनाई गयी तो फिर वही स्थिति हो जाएगी/ अन्धकार में एक खासियत होती है कि सूर्य के आते ही ये कहीं दूर घने जंगलो, कंदराओं में छुप जाता है और जैसे-जैसे सूर्य का प्रकाश क्षीण होता जाता है वैसे-वैसे अन्धकार फिर अपना कब्ज़ा जमाता जाता है/ ठीक यही प्रवृति शत्रु कि होती है वो भी मौके की तलाश में रहता है और मौका मिलते ही वार करता है/ भ्रष्टाचार भी हमारे समाज का एक विकट शत्रु है/
           एक बात तो तय है की हमने इसे अभी बढने से रोक दिया है पर इसे जड़ से मिटने के लियें हमें पहले अपने गिरबान में झांकना होगा/ क्योंकि सरकार अकेली कुछ नहीं कर सकती और न कानून बना देने से ही ये समस्या हल हो जाएगी/ इसके लियें मेरे पास कुछ उपाय हैं मगर इनकी सफलता की गारंटी 'समग्रता' में है मेरे कहने का मतलब है कि ये प्रयास एक साथ सभी को करने पड़ेंगा जैसे

  1. सबसे पहले अपने घर को भ्रष्टाचार से मुक्त करना होगा/ लड़के और लड़की के बीच खाने-पीने के चीजों होने वाले पक्षपात को भी मैने भ्रष्टाचार की क्ष्रेणी में रखा है/  बच्चों के सामने इमानदारी की मिसाल रखनी होगी जिससे उन्हें प्रेरणा मिले/
  2. किसी भी भ्रष्टाचार, पक्षपात या गलत कार्य की घोर निंदा करनी चाहिए, जिससे बच्चों में ये प्रवृत्ति ना पनपे/
  3. भ्रष्टाचार के दोहरे पैमाने को छोड़ना होगा/ ज्यादातर ऐसा होता है जब भ्रष्टाचार करने से हमे फायदा होता हो या हमारा कोई अपना सगा-सम्बन्धी भ्रष्टाचारी है तो हमें बुरा नहीं लगता, तो ये सब अब बंद करना होगा/
  4. ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार हो जो गलत तरीके से धनोपार्जन करते हों/ ऐसे घरों से विवाह सम्बन्ध ना बनाएं जायें जहाँ पर पैसा भ्रष्टाचार के माध्यम से आता है जहाँ तक में समझता हूँ ये भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति रोकने का सबसे बेहतरीन तरीका होगा/
  5. स्कूलों में नैतिक शिक्षा का लगभग लोप हो गया है उसे फिर से जीवित करना होगा
  6. प्राथमिक शिक्षकों को नैतिक रूप से सशक्त करना होगा और उनके पद को उच्च शिक्षा से कहीं ज्यादा महत्त्व देना होगा, जिसके लियें उनके वेतनमान को आकर्षक बनाना पड़ेगा/ 
ये कुछ ऐसे उपाय हैं जिन्हें ईमानदारी से अपनाने से समाज में भ्रष्टाचार को पनपने का मौका ही नहीं मिलेगा/ और हम एक सशक्त, ईमानदार और अग्रणी भारत वर्ष की कल्पना कर सकते हैं/ मेरे इन विचारों से यदि कोई असहमत हो या कुछ और जोड़ना चाहे तो उनके सुझावों का स्वागत है/

भ्रष्टाचार पर हल्ला बोल-1

भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार!!! हर तरफ इसी की चर्चा है हो भी क्यों ना, आखिर सभी त्रस्त हो चुके हैं इससे सामाजिक कार्यकर्त्ता हों या बाबा रामदेव सभी अपने-अपने ढंग से विरोध कर रहे थे पर ये किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह से इसे एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर, एक मंच से इसके खिलाफ लड़ा जाये तभी अन्ना लोकपाल बिल का मुद्दा लेकर जंतर-मंतर पर आमरण अनशन के लियें आये तो जैसे सभी को एक रास्ता मिल गया अलग-थलग पड़े इन भ्रष्टाचार विरोधियों को एक मंच मिल गया पूरे भारत से लोग जुड़ गए, विरोध की इन छोटी-छोटी धाराओं ने मिलकर एक ऐसी नदी का निर्माण कर दिया जिसके उफान के सामने किसी कि नहीं चली, सरकार के बड़े-बड़े वकील, कानून के ज्ञाता सब स्तब्ध रह गए और वही हुआ जो लोग चाहते थे इतिहास गवाह है, किसी जन आन्दोलन कभी इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली ये भारत वर्ष के लियें हर्ष की बात है भ्रष्टाचार पर इतना सुनियोजित और सफल हमला शायद कभी नहीं हुआ डिस्कवरी चैनल पर शेरों को शिकार करते हुए देखा था कुछ-कुछ वैसा ही यहाँ देखने को मिला पहले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ बाबा रामदेव और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वाक्-युद्ध  छेड़ा फिर उसे चारों तरफ से घेर लिया गया, मगर सरकार अपने मद में चूर थी इसलियें उसने पहले की ही तरह इसे अनदेखा कर दिया मगर फिर एक सही वक्त पर ऐसा विकट हमला हुआ कि सरकार चारों-खाने चित हो गयी कपिल सिब्बल हों या वीरप्पा मोइली सभी की सिट्टी-पिट्टी गुम है "दिग्गी" तो कहाँ पूंछ दबा कर छुप गयें हैं कुछ पता नहीं अन्दर से ना सही पर ऊपर से सरकार यही दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता के साथ हैं पर उनके पार्टी प्रवक्ताओं के चेहरे से खौफ और खीज के भाव आसानी से पढ़े जा सकतें हैं
सभी इस जीत का रसास्वादन कर रहे हैं पर क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ ये आखरी लड़ाई थी? क्या इससे भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा? और यदि नहीं तो इसका हल क्या है? फ़िलहाल इतना ही बाकी फिर लिखूंगा
क्रमश: