गुरुवार, 8 सितंबर 2011

अहसास

अम्मा! बचपन से उनको इसी संबोधन से पुकारते हुए सुना है, परिवार के सभी सदस्य, सगे-सम्बन्धी, अड़ोसी-पडोसी, छोटा हो या बड़ा सभी उन्हें इसी नाम से पुकारते हैंअम्मा कहलाना उन्हें इतना पसंद था कि उन्होंने अपने नाती-नातिन को भी इसी संबोधन से पुकारने को कह रखा था अम्मा और झरने में कई समानताएं हैं उनका मन और विचार झरने के जल के सामान स्वच्छ और निर्मल हैं और आज ८० वर्ष पार करने के बाद भी कार्य करने कि इच्छा शक्ति से 'अविरलता' का लोप नहीं हुआ है ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी और कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद एक ऐसे वक्तित्व की मालकिन, जिसके सामने पढ़े-लिखे व्यक्ति भी बोने नजर आते हैं अपने और इकलौते पुत्र के दम पर उन्होंने अपने परिवार की गाड़ी को खींच कर जहाँ ला खड़ा किया है वो वाकई लोगों के लियें प्रेरणा स्रोत है पर जैसे चाँद में दाग होता है वैसे ही उनमें भी एक अवगुण था जिन्दगी की जद्दोजहद में बीड़ी कब उनके हाथ में आ गयी ये तो अब उन्हें भी ठीक-ठीक याद नहीं है पर मुश्किल हालत में वो उनकी सबसे बड़ी सहेली थी जब भी उन्हें कोई चिंता घेर लेती थी तो बीड़ी पीने आवृति बढ़ जाती थी घर में और कोई इस लत का शिकार नहीं था तो सभी बीड़ी पीने के घोर विरोधी थे और उनकी बीड़ी छुड़ाने के लियें सब एक मत थे हालत सुधरे और उनकी चिंताएं कम हुईं तो कई बार प्रयास किये गए बीड़ी छुड़ाने के लियें मगर परिणाम वही "ढ़ाक के तीन पात" इसी के चलते कई बार माँ-बेटे में कई बार उनबन हुई सख्ती करने पर बीडियों की संख्या घट जाती थी मगर कुछ समय बाद फिर से वही सिलसिला शुरू हो जाता था सबके विरोध की वजह से जब वो सामने नहीं पी पाती थीं तो छुप-छुप के पीना शुरू कर दिया
 डाक्टरों से परिक्षण कराया तो रिपोर्ट नॉर्मल थी कोई खतरे की बात नहीं थी लेकिन ये लत छुड़ाने के लियें उन्हें बताया गया कि बीड़ी छोड़ दो वर्ना मर जल्दी जाओगी कुछ दिन इसका असर रहा पर लत की वजह से एक नया कुतर्क निकल कर सामने आया "अब क्या करना है जी के, मर ही जाऊं तो अच्छा है सभी तरह के हथकंडे अपना के देख लिए पर, ना माँ बीड़ी छोड़ने को तैयार थीं और ना बेटा अपनी छुडवाने की जिद्द पर इस बार बेटे ने आर-पार की लडाई का मन बना लिया था और एक अहिंसावादी हथियार अपनाया, बात-चीत बंद करके यूँ तो पहले भी मन-मुटाव के कारण बोल-चाल बंद हुई थी पर इस कुछ खास अंतर था वो था सुबह की राम-राम, जो पहली बार बंद हुई थी इस बात ने उस माँ का ह्रदय बुरी तरह झकझोर दिया क्योंकि बेटे के होश सँभालने के बाद ये उनकी जिन्दगी का पहले मौका था जब राम नाम का स्वर सबसे पहले उनके बेटे के मुख से नहीं आया पर अभी लत ज्यादा हावी थी सो माँ ने बहू को उलहना दिया, क्या एक बीड़ी की वजह से मैं राम-राम के लायक भी नहीं रही मैने जीवन में जो कुछ किया वो सब एक झटके में भुला दिया बात तो सही थी पर बेटे को बीड़ी छोड़ने से कम कुछ भी मंजूर नहीं था मन-मुटाव तो था पर कोई संवेदनहीन नहीं था दोनों की इक-दूसरे की गतिविधियों पर पैनी नजर थी और बहू के माध्यम से एक दूसरे की जरूरतों का ध्यान भी रखे हुए थे जैसे खाना खाया या नहीं इत्यादि तभी मौसम ने करवट ली और एक विचित्र घटना घटी, घर में बेटे को छोड़ अम्मा समेत सभी को बुखार ने अपनी चपेट में ले लिया सभी ने खाट पकड़ ली, अब सेवा करने वाला घर में केवल एक ही व्यक्ति रह गया था, बेटे ने सब के साथ माँ की भी दिलोजान से सेवा की और वो दिन भी आया जब सब स्वस्थ होकर अपने-अपने काम में लग गए मगर माँ-बेटे की बात-चीत सेवा सुश्रुआ के दौरान भी बंद ही रही अम्मा भी स्वस्थ हो गयीं पर इस घटना ने उनके दिलो-दिमाग पर गहरा असर किया बेटे के इस सेवा के ताप ने माँ के सभी लत से अभिभूत कुतर्कों को कपूर की तरह उड़ा दिया सेवा करके उसने माँ को ये अहसास दिलाया कि उसके रहते उसकी माँ को कोई कष्ट छू भी नहीं सकता, उसे माँ से नहीं वरन घ्रणा है तो बीड़ी से कोई बच्चा सब कुछ सहन कर सकता है पर ये कभी नहीं सह सकता कि माँ के लियें उससे प्यारी भी कोई चीज हो सकती है इस बात का अहसास होते ही माँ के मन में ममता का ऐसा सैलाब उमड़ा जो सब गिले-शिकवे बहा कर ले गया।  दोनों के रिश्ते में विश्वाश का अहसास फिर से जाग गया जिसने इच्छा शक्ति के साथ-साथ बूढ़े हाथों को भी इतना सशक्त कर दिया कि माँ ने बीड़ी का बण्डल तोड़ कर फ़ेंक दिया और भविष्य में कही ना पीने की कसम खायी चाँद में अब भी दाग है पर आज अम्मा का व्यक्तित्व बेदाग है, क्योंकि चाँद के पास ऐसा बेटा नहीं है जिसका विश्वास  महात्मा ध्रुव के सामान अटल हो 
इस अहसास ने अम्मा से वो करवा दिया जो मौत का डर भी ना करवा पाया, अहसास इच्छा शक्ति को ऐसी द्रढ़ता प्रदान करता है जिसके आगे कुछ भी असंभव नहीं होता डाकू रत्नाकर को अपनी भूल का अहसास हुआ तो वो वाल्मीकि बन गए, रत्नावली ने जब अपने पति को उनकी भूल का अहसास दिलाया तो वो तुलसीदास बन गए ये अहसास ही तो है जो हमें इंसान बनता है और महान बनने को प्रेरित करता है