पिछले चिट्ठे से आगे......
एक बात तो तय है की हमने इसे अभी बढने से रोक दिया है पर इसे जड़ से मिटने के लियें हमें पहले अपने गिरबान में झांकना होगा/ क्योंकि सरकार अकेली कुछ नहीं कर सकती और न कानून बना देने से ही ये समस्या हल हो जाएगी/ इसके लियें मेरे पास कुछ उपाय हैं मगर इनकी सफलता की गारंटी 'समग्रता' में है मेरे कहने का मतलब है कि ये प्रयास एक साथ सभी को करने पड़ेंगा जैसे
- सबसे पहले अपने घर को भ्रष्टाचार से मुक्त करना होगा/ लड़के और लड़की के बीच खाने-पीने के चीजों होने वाले पक्षपात को भी मैने भ्रष्टाचार की क्ष्रेणी में रखा है/ बच्चों के सामने इमानदारी की मिसाल रखनी होगी जिससे उन्हें प्रेरणा मिले/
- किसी भी भ्रष्टाचार, पक्षपात या गलत कार्य की घोर निंदा करनी चाहिए, जिससे बच्चों में ये प्रवृत्ति ना पनपे/
- भ्रष्टाचार के दोहरे पैमाने को छोड़ना होगा/ ज्यादातर ऐसा होता है जब भ्रष्टाचार करने से हमे फायदा होता हो या हमारा कोई अपना सगा-सम्बन्धी भ्रष्टाचारी है तो हमें बुरा नहीं लगता, तो ये सब अब बंद करना होगा/
- ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार हो जो गलत तरीके से धनोपार्जन करते हों/ ऐसे घरों से विवाह सम्बन्ध ना बनाएं जायें जहाँ पर पैसा भ्रष्टाचार के माध्यम से आता है जहाँ तक में समझता हूँ ये भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति रोकने का सबसे बेहतरीन तरीका होगा/
- स्कूलों में नैतिक शिक्षा का लगभग लोप हो गया है उसे फिर से जीवित करना होगा
- प्राथमिक शिक्षकों को नैतिक रूप से सशक्त करना होगा और उनके पद को उच्च शिक्षा से कहीं ज्यादा महत्त्व देना होगा, जिसके लियें उनके वेतनमान को आकर्षक बनाना पड़ेगा/
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जवाब देंहटाएंपति ने अपनी पत्नी से कहा, "संत महात्मा कह गये हैं……
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु और नारी ये सब ताड़न के अधिकारी.
इन सभी को पीटना चाहिये!!" इसका अर्थ समझती हो या समझायें?
पत्नी बोली
"हे स्वामी इसका मतलब तो बिलकुल साफ है
इसमें एक जगह मैं हूँ और चार जगह आप हैं."