आजकल हर तरफ शोर है भ्रष्टाचार हटाओ! भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंको! पर भ्रष्टाचार का ये पौधा यूँ ही नहीं फला-फूला, इसे हमने इतना खाद-पानी दिया कि वो नन्हा सा पौधा अब विशाल वृक्ष बन गया। आज जब इसकी जड़े हर घर कि चूलें हिलाने लगी है तब कहीं जाकर हमारी तन्द्रा टूटी है। वैसे सही मायनों में ये हमारी तन्द्रा नहीं थी, हमने जान-बूझ कर आपनी आँखें बंद कर रखीं थी क्योंकि इसका असर पडोसी पर था हम पर नहीं। यही सोच तो भ्रष्टाचार कि सबसे बड़ी पोषक है। अंग्रेजी में एक acronym होता है “NIMBY“- Not In My Back Yard जिसका शाब्दिक अर्थ है “मेरे घर के पिछवाड़े नहीं” अर्थात जिसका असर मुझ पर ना पड़े। औरो के लियें तो ये सिर्फ एक शब्द है पर भारतीयों ने इसे एक सिद्धांत के रूप में अपनाया है। यही सिद्धांत ही है भ्रष्टाचार की खाद यानि “निम्बी”
भ्रष्टाचार ही क्या सभी अपराधों का पोषक है ये निम्बी। आप कोई भी समस्या उठा कर देख लें जैसे खचखच भरी बस में २-३ आवारा तत्व आकर किसी भी महिला या लड़की को बेधड़क छेड़ सकते हैं उन्हें पता हैं कि इनमें से कोई नहीं बोलेगा क्योंकि सभी मन, क्रम और वचन से निम्बी सिद्धांत का पालन करते हैं। किसी कार्यालय चले जाइये फाइलों के चट्टे लगे मिलेंगे, सब शॉर्टकट से अपना-अपना काम जल्दी कराने की कोशिश में लगे रहेंगे। किसी भी रेलवे टिकट घर पर चले जाइये, २-४ आदमी लाइन तोड़कर टिकेट लेते हुए मिल ही जायेंगे। कोई विरोध करने की हिम्मत दिखायेगा भी तो कोई उसका साथ नहीं देगा। क्योंकि हम तो निम्बी लोग है यदि हमने साथ दिया तो हमारे सिर मुसीबत ना आ जाये इसलियें दूसरे को करने दो हो गया तो ठीक नहीं तो खड़े ही हैं। पडोसी के घर चोर या बदमाश आ जायें बस अपने को बचाओ जब सब चले जायें तो फिर बात बनाओ “बड़ा बुरा हुआ साब”, “सरकार कुछ करती नहीं” पुलिस वालों को गाली दो और काम खत्म क्योंकि उनका तो घर सुरक्षित है। रिश्वत यदि अपने घर आये तो ऊपर की कमाई और जब देने पड़े तो भ्रष्टाचार। दहेज़ अपने को मिले तो कहते है बाप ने अपनी बेटी को उपहार दिया है पर जब देनी पड़े तो सम्बंधी दहेज़ लोभी।
ऐसी बात नहीं हैं ये सिर्फ आम आदमी तक ही सीमित है वरन राजनीती भी इससे अछूती नहीं है जिसका ताजा-ताजा उदहारण है जे. पी. सी. की रिपोर्ट। जब तक कांग्रेस जे. पी. सी. के घेरे में नहीं आई थी तब तक जोशी जी एक वरिष्ट, गंभीर और ईमानदार नेता रहे पर जैसे ही प्रधानमंत्री और कुछ उच्च-पदासीन कांग्रेसियों को उन्होंने दोषी करार दिया तुरंत कांग्रेस ने रिपोर्ट को राजनीती से प्रेरित बता दिया और कुचक्र रचकर वोटिंग के जरिये ख़ारिज करा दिया।
ये सब तब तक होता रहेगा जब तक हम इस सिद्धांत पर चलते रहेंगे। जिस दिन हम इसे छोड़ देंगे कोई सामाजिक बुराई पनप ही नहीं पायेगी फिर हमें किसी लोकपाल बिल की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
भ्रष्टाचार ही क्या सभी अपराधों का पोषक है ये निम्बी। आप कोई भी समस्या उठा कर देख लें जैसे खचखच भरी बस में २-३ आवारा तत्व आकर किसी भी महिला या लड़की को बेधड़क छेड़ सकते हैं उन्हें पता हैं कि इनमें से कोई नहीं बोलेगा क्योंकि सभी मन, क्रम और वचन से निम्बी सिद्धांत का पालन करते हैं। किसी कार्यालय चले जाइये फाइलों के चट्टे लगे मिलेंगे, सब शॉर्टकट से अपना-अपना काम जल्दी कराने की कोशिश में लगे रहेंगे। किसी भी रेलवे टिकट घर पर चले जाइये, २-४ आदमी लाइन तोड़कर टिकेट लेते हुए मिल ही जायेंगे। कोई विरोध करने की हिम्मत दिखायेगा भी तो कोई उसका साथ नहीं देगा। क्योंकि हम तो निम्बी लोग है यदि हमने साथ दिया तो हमारे सिर मुसीबत ना आ जाये इसलियें दूसरे को करने दो हो गया तो ठीक नहीं तो खड़े ही हैं। पडोसी के घर चोर या बदमाश आ जायें बस अपने को बचाओ जब सब चले जायें तो फिर बात बनाओ “बड़ा बुरा हुआ साब”, “सरकार कुछ करती नहीं” पुलिस वालों को गाली दो और काम खत्म क्योंकि उनका तो घर सुरक्षित है। रिश्वत यदि अपने घर आये तो ऊपर की कमाई और जब देने पड़े तो भ्रष्टाचार। दहेज़ अपने को मिले तो कहते है बाप ने अपनी बेटी को उपहार दिया है पर जब देनी पड़े तो सम्बंधी दहेज़ लोभी।
ऐसी बात नहीं हैं ये सिर्फ आम आदमी तक ही सीमित है वरन राजनीती भी इससे अछूती नहीं है जिसका ताजा-ताजा उदहारण है जे. पी. सी. की रिपोर्ट। जब तक कांग्रेस जे. पी. सी. के घेरे में नहीं आई थी तब तक जोशी जी एक वरिष्ट, गंभीर और ईमानदार नेता रहे पर जैसे ही प्रधानमंत्री और कुछ उच्च-पदासीन कांग्रेसियों को उन्होंने दोषी करार दिया तुरंत कांग्रेस ने रिपोर्ट को राजनीती से प्रेरित बता दिया और कुचक्र रचकर वोटिंग के जरिये ख़ारिज करा दिया।
ये सब तब तक होता रहेगा जब तक हम इस सिद्धांत पर चलते रहेंगे। जिस दिन हम इसे छोड़ देंगे कोई सामाजिक बुराई पनप ही नहीं पायेगी फिर हमें किसी लोकपाल बिल की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
Praveen ji bahut accha sachha aur steek likha hai aapne. mujhe apni likhi huee chand panktiyaan yaad aa gyee, prashit kar rahi hoon....
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार.... दोषी कौन ?
इक दफ्तर में मैं हूँ अफसर और दूजे में हूँ जनता आम
इक दफ्तर में हूँ मैं भ्रष्ट और दूजे में मैं हूँ परेशान
यह कैसा दोहरा खेल , यह कैसा संज्ञान ?
कभी कहलाऊँ चोर, और कभी बन जाऊ अनजान
पहले पल ठगता दूजो को
खुद ठग जाता अगले पल मैं
पहले पल मैं चोरी करता
पल अगले दर्ज रपट कराता
खुद को देखूं और दूजो को समझू
खुद को मानू और दूजो को पहचानू
मैं तुम और आप भ्रष्ट सभी है
फिर क्या है यह बात
दोषी तुम हो ,मैं सच्चा हूँ
ऐसी क्यों है बात ?
जनता मैं और सरकार भी मैं हूँ
व्यवस्था का भ्रष्टाचार भी मैं हूँ
जिस दिन बद्लूगा अपने को
होगा तब तिलस्मात !!!!!!!!