'बिच्छू डंक ना मारे' और 'ब्राह्मण क्रोधी ना हो' ऐसा कभी हो सकता है क्या? असंभव!!! क्रोध और ब्राह्मण का तो चोली-दामन का साथ है और अब तो ब्राह्मणों का ये एक मौलिक गुण बन गया है। इस मौलिकता के स्टार आइकॉन हैं "दुर्वासा ऋषि"। कहते हैं "क्रोध पराजय का पहला लक्षण है" तो फिर ये अवगुण एक विद्वान्, विवेकी और अध्यापन करने वाले मनुष्य में कैसे प्रवेश कर गया? ये प्रश्न दिमाग में आते ही, मैं निकल पड़ा अपने अर्जित ज्ञान की छोटी से लालटेन लेकर, ब्राह्मणों के उस अतीत में, जहाँ मेरे इस प्रश्न का उत्तर मिल सके। यूँ तो क्रोध में आकर शाप देने कई धटनाएं याद आ रही हैं पर मेरी राय में जो जिस व्यक्ति ने क्रोध को एक विचारधारा का रूप दिया वो हैं "परशुराम"। उनके पिता "यमदग्नि" एक महान ऋषि थे और धर्म संसद के सप्त ऋषियों में से एक थे। उनकी राय में ब्राह्मणों का कार्य था, अध्धयन और अध्यापन। इसीलियें सहस्त्रबाहू उनके आश्रम जलाता रहा और वो अपना नया आश्रम बनाते रहे। पर परशुराम की राय उनसे सर्वदा अलग थी, उनके अनुसार यदि आवश्यकता पड़े तो ब्राह्मण को भी शास्त्र उठाना चाहिए और कभी-कभी आक्रमण से भी शांति स्थापित की जा सकती है। इसी मतान्तर के चलते उन्हें अपने पिता का आश्रम छोड़ना पड़ा पर वो आपनी राय पर अडिग रहे। बाद में जो कुछ उनके साथ घटा उससे ऋषि यमदग्नि भी उनके दोनों तर्कों पर सहमत हो गए और उन्होंने भी हथियार उठाया। शायद यही वो एतिहासिक घटना थी जिसने ब्राह्मण को क्रोधी और आक्रामक बनाया। ये उस वक्त तार्किक रूप सही भी था मगर क्या ब्राह्मणों को इसे अपनी मौलिकता बना लेना चाहिए था? क्या क्षत्रियों के नाश के साथ क्रोध और आक्रामकता पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए था? आक्रामकता से जब सफलता मिल जाती है तो यही क्रोध कब अहंकार में परिवर्तित हो जाता है पता ही नहीं चलता। अहंकार सबसे पहला हमला विवेक पर करता है और विवेकहीन मनुष्य कभी सही-गलत में विभेद नहीं कर पता। यही हुआ परशुराम जी के साथ भी, उनके इसी अहंकार को तोड़ने के लियें स्वयं नारायण को आना पड़ा जिन्होंने शिव धनुष तोड़कर उनके अहंकार का नाश किया।
जब मैंने दोनों घटनाओं का विश्लेषण किया तो पाया क्रोध और आक्रामकता की आवशयकता तो पड़ती है पर इसे एक शास्त्र की तरह इस्तेमाल करो अपनी मौलिकता ना बनाओ। परशुराम जी का उद्धार तो श्री राम ने कर दिया, पर पहले तो सिर्फ एक परशुराम थे मगर अब तो हर ब्राह्मण परशुराम बना घूम रहा है वैसे भी जब इस कलयुग में गंगा शिव प्रतिमा बहा ले जाती है ऐसे में नारायण के अवतार लेने की तो उम्मीद ही नहीं है तो हे! ब्राह्मणों क्रोध को पालना सीखो इसे काबू में रखो इसके वशीभूत होकर कार्य मत करो। ये एक परमाणु शक्ति की तरह है इसे शांति और प्रगति के कार्यों में इस्तेमाल करो ना कि अपने विनाश के लियें।
Very well said.. anger is like a fire
जवाब देंहटाएंA good artical in all respect
उत्साहवर्धन के लियें धन्यवाद माला जी
जवाब देंहटाएंReally fantastic!!! ye chhoti si lalten kafi kuchh dekh sakti hai :)
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